सिद्धार्थनगर: डुमरियागंज तहसील मुख्यालय से आठ किमी दूरी पर स्थित धार्मिक तीर्थ स्थल भारत भारी अपने इतिहास में कई काल खण्डों का रहस्य समेटे हुए है। पौराणिक महत्व के अलावा ऐतिहासिक धरोहर के रूप में विख्यात इस स्थल पर कार्तिक पूर्णिमा को लगने वाले मेले में क्षेत्रीय लोगों के अलावा भारत के कोने-कोने से लोग मेले में आते हैं। पवित्र सरोवर में स्नान कर पूजा पाठ करते है। यहां भरत कुंड जलाशय, शिव मंदिर, रामजानकी मंदिर, मां दुर्गा व हनुमान जी का भव्य मंदिर धार्मिक स्थल की शोभा बढ़ाने के साथ श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है।
भरत कुंड सरोवर का पानी हमेशा स्वच्छ व निर्मल रहता है इस सरोवर में घास फूस का एक तिनका भी नही दिखाई देता। कार्तिक पूर्णिमा के अलावा विभिन्न त्योहारों पर भी यहां मेले का आयोजन होता है। पोखरे के एक छोर पर शिवलिंग स्थापित है तो दूसरी तरफ पीर बाबा का स्थान है जहां पर भी लोग अपनी मनौती के लिए जाते है।
ऐसी मान्यता है कि त्रेता युग में श्रीराम-रावण युद्ध के दौरान जब मेघनाथ लक्ष्मण पर बीरघातिनी शक्ति वाण का प्रयोग किया और लक्ष्मण मूर्छित हो गये तब सुषेन वैद्य के कहने पर हनुमान जी संजीवनी बूटी लेकर आकाश मार्ग से लौट रहे थे तो इसी स्थल पर पूजा कर रहे भरत ने अयोध्या का कोई शत्रु समक्ष कर वाण चला दिया, वाण लगने से हनुमान जी पर्वत के साथ वही गिर पड़े जिससे उक्त स्थल पर पवित्र सरोवर का उदय हुआ। एक अन्य मान्यता यह भी है कि महाराज दुष्यंत के पुत्र भरत ने इसे अपनी राजधानी बनाया था जिससे इसका नाम भरत भारी पड़ा जो एक बहुत बड़े नगर के रूप में स्थापित हुआ था। एक अन्य मान्यता के अनुसार राम रावण युद्ध में जब रावण की मौत हो गयी तब श्रीराम पर ब्रह्म हत्या आरोप लगा तब कोई भी पुरोहित उसके निवारण के लिए तैयार नही हुआ तो गुरू वशिष्ठ ने कन्नौज से दो नाबालिग बालकों को अयोध्या लाकर जनेऊ कराकर यज्ञ पूर्ण कराया तब उनका ब्रह्म हत्या दोष दूर हुआ। लेकिन वापस घर जाने पर बालकों को घर वालों ने त्याग दिया। फलस्वरूप वह पुन: वशिष्ठ जी से आकर मिले तब श्रीराम वाण चला कर कहा कि जहां यह वाण गिरे वही अपना निवास स्थान बना कर जीवन करे जो वाण भरत भारी में आ गिरा जिससे इस विशाल सरोवर का निर्माण हुआ।
यूनाइटेड प्राविंसेज आफ अवध एण्ड आगरा के वायलूम 32 वर्ष 1907 के पृष्ट 96,97 में इस स्थल का उल्लेख है कि वर्ष 1875 में भारत भारी कार्तिक पूर्णिमा मेले 50 हजार दर्शनार्थियों ने भाग लिया था। आरकोलाजिकल सर्वे आफ इण्डिया 1996-97 के अनुसार पुषाण कालीन सभ्यता का प्रमाण भी मिला है।
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के प्रोफेसर सतीश चंद्र व एसएन सिंह सहित गोरखपुर विश्वविद्यालय के डा. कृष्णा नंद त्रिपाठी ने भारत भारी का स्थलीय निरीक्षण करके मूर्तियों, धातुओं पुरा अवशेषों के अवलोकन के बाद टीले के नीचे एक समृद्ध सभ्यता होने की बात कही। प्राचीन टीले व कुएं के नीचे दीवालों के बीच में कही-कही लगभग आठ फिट लम्बे नर कंकाल मिलते है जो छूते ही राख में तबदील हो जाते है। श्री त्रिपाठी द्वारा ले जाये गये अवशेषों को गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के संग्रहालय में भी देखा जा सकता है।